दिसम्बर का महिना खत्म हो चला है पर सर्दियाँ अब शुरू हुई है हम जब सुबह अपने नर्म और गर्म बिस्तर से उठते है तो क्या हममें से कोई यह बात सोचता है की बीती रात कितने लोगों ने सड़क, पार्क या फ़िर किसी फुटपाथ पर काटी होगी। मैं और आप इस ठण्ड में रजाई से निकले के बारे में भी नही सोच सकते लेकिन कुछ लोग पूरी रात बिना चद्दर के ही काट लेते है ये बहादुरी नही मजबूरी है । रोज़गार की तलाश में रोज़ बहुत से लोग दिल्ली आते है लेकिन दिल्ली में क्या अब लोगों का पेट भरने और उनके सर पर छत देने की शक्ति रह गई है ...?
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7 comments:
bahut khub
keep on clicking
साहित्यकार समाज का दर्पण होता है, किंतु
आप जैसे छायाकार सिद्ध कर रहे हैं कि
छायाकर भी समाज का दर्पण होते हैं.
काश प्रशासनिक नीतियाँ एवं, समाजिक सरोकारों से
जुड़ी संस्थायें भी इस और ध्यान दे पातीं.
- विजय
तस्वीरें आपकी संवेदना बयान करती है
बधाई और नव वर्ष की शुभकामना
bahut sahi..keep posting
jab sota hai saara jahan garm garm bistar main,
raat ki thand main thithurthi ek zindagi hai,
koi ajnabi hai nahi yeh dost mere,
yeh ham main se kisi ek ki majboori hai..
apka article pada bahut accha likha hai..... keep it up....
जीना इसी का नाम है
क्या कहूँ?
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