दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे 28वें अंतर्राष्टीय व्यापार मेले का उद्दघाटन 14 नवम्बर को भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के द्वारा किया गया। इस साल जितने भीड़ आने की उम्मीद थी उतनी भीड़ नही आ रही है। यहाँ पर शौपिंग करने के लिए बहुत कुछ है एक ही जगह पर आप भारत के साथ साथ दूसरे देशो के पवेलियन से भी शौपिंग कर सकते है।
14 नवम्बर को चिल्ड्रेन डे के रूप में मनाया जाता है। सभी बच्चे इस दिन खुशियाँ मनाते है पर इनमे से कुछ बच्चो को इस दिन के बारे में कुछ जानकारी ही नही होती उनकी जिंदगी इस दिन भी वैसे ही है जैसी बाकि दिन होती है। यह बच्चे भारत के अलग - अलग प्रदेशो से भाग कर एक सुहाने भविष्य के लिए दिल्ली आते है लेकिन दिल्ली की भीड़ में इनका बचपन खो सा जाता है।
थांगा पेंटिंग
तिब्बत बहुत सी कलाओं का केन्द्र रहा है , धर्मशाला में रह रहे तिब्बतियो के अनुसार चीन अधिकृत तिब्बत में उनकी इन कलाओ का सम्मान नही किया जाता है।1949 चीनी कब्जे के बाद तिब्बत के लोंगो ने भारत , नेपाल, जैसे पडोसी देशो में पनाह ली। और उन्होंने अपनी कलाओ को संरक्षण के लिए उनका प्रयोग यहाँ पर करना आरम्भ कर दिया जिससे वो कुछ पैसे कमा कर अपने समाज की समस्याओ का समाधान कर सके और साथ ही तिब्बत की समृध्द सांस्क्रतिक धरोहर को बरक़रार रख सके। तिब्बत में वैसे तो बहुत सी हस्तकला है । थांगा पेंटिंग , लकड़ी पर दस्तकारी , कपड़ो से उनकी परम्परिक पोशाक बनाना आदि उनमे से कुछ है।
तिब्बत बहुत सी कलाओं का केन्द्र रहा है , धर्मशाला में रह रहे तिब्बतियो के अनुसार चीन अधिकृत तिब्बत में उनकी इन कलाओ का सम्मान नही किया जाता है।1949 चीनी कब्जे के बाद तिब्बत के लोंगो ने भारत , नेपाल, जैसे पडोसी देशो में पनाह ली। और उन्होंने अपनी कलाओ को संरक्षण के लिए उनका प्रयोग यहाँ पर करना आरम्भ कर दिया जिससे वो कुछ पैसे कमा कर अपने समाज की समस्याओ का समाधान कर सके और साथ ही तिब्बत की समृध्द सांस्क्रतिक धरोहर को बरक़रार रख सके। तिब्बत में वैसे तो बहुत सी हस्तकला है । थांगा पेंटिंग , लकड़ी पर दस्तकारी , कपड़ो से उनकी परम्परिक पोशाक बनाना आदि उनमे से कुछ है।
थांगा पेंटिंग तिब्बत में प्राचीन काल से चली आ रही है। इस पेंटिंग को सूती कपड़े पर बनाया जाता है , इस में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है। एक पेंटिंग को पूरा होने में वर्षो का समय लग जाता है, समय पेंटिंग के साइज़ पर निर्भर करता है। लकड़ी पर दस्तकारी भी यहाँ की कलाओ में से एक है। डिजाईन को पहले किसी पेपर पर बना लिया जाता है और फिर उसे शीशम की लकडी के ऊपर रख कर लकड़ी पर वो ही डिजाईन बनाया जाता है।
8 महीनो की मेहनत
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